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लिखना-पढ़ना जानना, कम-से-कम एक भाषा शुद्ध रूप से बोल सकना, थोड़ा-सा सामान्य भूगोल जानना, आधुनिक विज्ञान का थोड़ा-सा परिचय होना और आचार- व्यवहार के कुछ नियम जानना- किसी दल या समाज में रहने के लिये यह जरूरी
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२२३ मुझे लगता हैं कि योग के बिना मनोविज्ञान निर्जीव है ।
मनोविनोद के अध्ययन का अनिवार्य परिणाम होना चाहिये योग, अगर योग सिद्धांत नहीं तो कम-से-कम क्रियात्मक योग ।
(२३-१२-९९६०)
जो एक है उसके भाग मत करो । विज्ञान और आध्यात्मिकता, दोनों का एक ही लक्ष्य है-'परम भागवत सत्ता' । फर्क बस इतना है कि आध्यात्मिकता यह बात जानती है और विज्ञान नहीं जानता ।
(दिसंबर १९६२)
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मधुर मर कुछ चीजें मेरी प्रगति के लिये अच्छी हैं लेकिन बहुत नीरस लगती हैं उदाहरण क्वे लिये गणित एक अच्छा विषय है लेकिन नहीं रुचता कृपया बताश्ये कि मैं उन विषयों में कैसे रस सकता हुं जिनकी ओर मुझे आकर्षण नहीं होता?
ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जो हमें जाननी चाहिये, इसलिये नहीं कि वे विशेष रुचिकर हैं बल्कि इसलिये कि ३वे उपयोगी या अनिवार्य तक हैं; गणित उनमें से एक हैं ।
जब हमारे पास ज्ञान की मजबूत पृष्ठभूमि हों तभी हम सफलता के साथ जीवन का सामना कर सकते हैं ।
इतिहास और भूगोल केवल उन मनों को रोचक लग सकते हैं जो इस धरती को जानने के लिये उत्सुक हैं, जिसपर हमारा निवास है ।
इन दो विषयों में रस ले सखने से पहले, तुम्हें अपनी ज्ञान की प्यास के क्षितिज को विस्मृत करना और अपनी चेतना के क्षेत्र को बढ़ाना चाहिये ।
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आपको पाने में गणित इतिहास विज्ञान कैसे सहायक हो सकते हैं?
ये कई तरीकों से सहायक हो सकते हैं
२२४ १. 'सत्य' की ज्योति पाने और सह सकने के लिये मन को मजबूत, विस्मृत ओर नमनीय होना चाहिये । ये अध्ययन इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बहुत अच्छे हैं ।
२. अगर तुम विज्ञान का काफी गहराई में अध्ययन करो, तो वह तुम्हें बाहरी रूप- रंग की अवास्तविकता का भान करा देगा और इस तरह तुम्हें आध्यात्मिक सद्वस्तु की ओर ले जायेगा ।
३. भौतिक प्रकृति के सभी पहलुओं और गतियों का अध्ययन तुम्हें वैश्व माता के संपर्क में ले आयेगा, और इस तरह तुम मेरे ज्यादा नजदीक होगे ।
(१७ -१२ -१९६६)
रही बात अंकगणित की । मैं लिखित की अपेक्षा व्यावहारिक गणित को ज्यादा पसंद करती हूं, मानसिक गणित की क्षमता के विकास पर जोर देती हूं । यह ज्यादा कठिन है, लेकिन यह तुम्हारे मानस दर्शन और तर्क-बुद्धि की क्षमता को बहुत विकसित करता है । रट हुए ज्ञान की जगह सच्ची समझदारी विकसित करने के लिये यह एक समर्थ उपाय है।
जब तुम मानसिक अंकगणित जानते हों और अंकगणित को समझते हो, तो फिर दूसरे गणित के सीखने-समह्मने मे बहुत कम समय लगता है ।
समान वस्तुओं की सहायता से-छोटी संख्याओं के लिये तुम स्वयं बच्चों से हीं शुरू कर सकते हों और फिर जब दहाई और सेंकते की बात आये तो कंकण या गणित की सहायता ले सकते हो ।
इस भांति, थोड़ा कष्ट उठाकर, तुम उन्हें सभी क्रियाएं तर्कसंगत रूप में सीखा सकते हो और इस तरह है बच्चों के लिये वास्तविक, जीवित और ठोस अर्थ ले लेते हैं ।
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